मैं अगले जन्म में लता मंगेशकर नहीं बनना चाहती... आखिर सुर सरस्वती ने क्यों कहा था ऐसा?
Raman KaurFebruary 05, 2022
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लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) की सुरीली आवाज ने उन्हें एक अलग पहचान दी। वो आवाज जिसके आगे हर एक गायक नतमस्तक है। लता दीदी के गाने ने हर दिलों की धड़कन को छुआ है.... उनकी आवाज के दीवाने कभी चाहकर भी लता मंगेशकर जैसा मुकाम नहीं पा सकते। लता मंगेशकर एक ही थीं.. और हमेशा एक ही रहेंगी। लेकिन दिलचस्प है कि एक दौर में जहां हर सिंगर लता मंगेशकर जैसा बनना चाहता था, खुद लता दीदी ने एक बार कहा कि वह अगले जन्म में लता मंगेशकर नहीं बनना चाहतीं। एक इंटरव्यू में जब लता मंगेशकर ने यह बात कही तो हर सुनने वाला हैरान हो गया। तब लता मंगेशकर ने कहा था- मैं अगले जन्म में फिर से लता मंगेशकर नहीं बनना चाहती। लता मंगेशकर से जुड़ा यह किस्सा जावेद अख्तर ने अपने शो पर सुनाया था और इसके पीछे की वजह भी उन्होंने गिनाई थी। दरअसल लता मंगेशकर की इस बात के पीछे दर्द की परतों को जावेद अख्तर ने खोला था और उनकी पूरी कहानी कुछ इस तरह से सुनाई थी। लता मंगेशकर से एक इटरव्यू के आखिर में पूछा गया कि वह अगले जन्म में क्या बनना चाहेंगी, इस पर उनका जवाब था कि वह चाहे जो बनें लेकिन लता मंगेशकर तो बिल्कुल नहीं बनना चाहेंगी। लता मंगेशकर के बेहद करीबी जावेद अख्तर ने एक शो पर लता मंगेशकर के इसी बात पर हैरानी जताते हुए कुछ बातें बताई थीं। जावेद अख्तर ने बताया था कि अगले जन्म में लता मंगेशकर न बनने की चाहत का जवाब सुनकर वह चौंके थे। बाद में उन्होंने जब उनकी जिंदगी के पहलुओं को गहराई से झांका तो पाया कि असल में उनकी जिंदगी जिन तकलीफों से गुजरी थीं, वे इतने गहरे थे कि वो फिर कभी लता बनने से डरती हैं। जावेद अख्तर ने कहा था, 'लता ने जिंदगी में क्या-क्या दुख नहीं देखे। उन्होंने जद्दोजहद की जिंदगी देखी। बचपन में दुखों का पहाड़ उठाना पड़ा। पिता दीनानाथ न सिर्फ बहुत बड़े संगीतकार थे बल्कि रंगमंच का अभिनय भी करते थे। उन्होंने तीन मराठी फिल्में बनाईं मगर फ्लॉप रहीं। जिसके कारण कंपनी बंद करनी पड़ी। आर्थिक नुकसान के कारण 1941 में घर बेचकर मंगेशकर परिवार पुणे आ गया। इस बीच मंगेशकर की सेहत जवाब दे गई। 1943 में दीनानाथ मंगेशकर की मौत हो गई। तब लता की उम्र 14 साल की थी। पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने के कारण परिवार का भार कम उम्र में उनके ऊपर आ पड़ा। उस वक्त प्ले बैक सिंगिंग का चलन नहीं था। छोटे-मोटे रोल मिलते थे। आठ से 10 साल की उम्र में यह बालिका स्टेज पर गाने लगी। इससे होने वाली कमाई से परिवार का खर्च चलता था।' जावेद ने आगे कहा, 'दीनानाथ मंगेशकर घर पर संगीत की शिक्षा देते थे। वे एक दिन अपने एक शिष्य को शिक्षा दे रहे थे। फिर पिता मंगेशकर कमरे से बाहर निकल आए। उस वक्त लता संगीत की शिक्षा नहीं ले रहीं थीं। मगर उनके घर में हवाओं में संगीत की शिक्षा घुली हुई थी। लता ने देखा कि पिता का शिष्य गाने को सही से नहीं गा रहा है। यह देखकर लता कमरे में पहुंचीं और लड़के से कहा- तुम वैसा नहीं गा रहे हो,जैसा पिताजी ने गाया है। फिर लता ने खुद गाकर सुनाया। यह सुन जहां लड़का हैरान रह गया वहीं पीछे मौजूद खुशी से निहाल हो उठे। उन्होंने पत्नी से कहा कि हमारे घर में ही बड़ी प्रतिभा छिपी हुई है।' उन्होंने उनके दर्द वाली परतों को खोलते हुए कहा, 'लता ने जिंदगी में क्या-क्या दुख नहीं देखे। उन्होंने जद्दोजहद की जिंदगी देखी। बचपन में दुखों का पहाड़ उठाना पड़ा। पिता दीनानाथ न सिर्फ बहुत बड़े संगीतकार थे बल्कि रंगमंच का अभिनय भी करते थे। उन्होंने तीन मराठी फिल्में बनाईं मगर फ्लॉप रहीं। जिसके कारण कंपनी बंद करनी पड़ी। आर्थिक नुकसान के कारण 1941 में घर बेचकर मंगेशकर परिवार पुणे आ गया। इस बीच मंगेशकर की सेहत जवाब दे गई। 1943 में दीनानाथ मंगेशकर की मौत हो गई। तब लता की उम्र 14 साल की थी। पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने के कारण परिवार का भार कम उम्र में उनके ऊपर आ पड़ा। उस वक्त प्ले बैक सिंगिंग का चलन नहीं था। छोटे-मोटे रोल मिलते थे। आठ से 10 साल की उम्र में यह बालिका स्टेज पर गाने लगी। इससे होने वाली कमाई से परिवार का खर्च चलता था।' जावेद अख्तर कहते हैं कि 1943 में लता ने पहला हिंदी गाना गाया। शब्द रहे-हिंदुस्तान वालों अब तो मुझे पहचानो…। वाकई कुछ ही बरसों में हिंदुस्तान और पूरी दुनिया ने उन्हें पहचाना। 1945 में मंगेशकर परिवार पूना छोड़कर मुंबई चला आया। तब लता की मुलाकात मास्टर विनायक से हुई और उनकी मदद से नाना चौक में मंगेशकर परिवार को छोटा सा घर मिल गया। दुखों ने यहीं पीछा नहीं छोड़ा। मास्टर विनायक भी दुनिया से चले गए। फिर मुश्किल शुरू हुई। इसके बाद लता की मुलाकात मास्टर गुलाम हैदर से हुई। हैदर ने उन्हें उस जमाने के बड़े प्रड्यूसर मुखर्जी से मिलवाया। तब मुखर्जी फिल्म शहीद बना रहे थे। हैदर ने कहा कि उनकी फिल्म के लिए लता गा सकती हैं। मुखर्जी ने लता का गीत सुनकर कहा किआवाज ठीक नहीं है, पतली है। उन्होंने लता को रिजेक्ट कर दिया। मगर गुलाम हैदर को लता की प्रतिभा पर पूरा भरोसा था। 1948 में मजबूर फिल्म में जब लता को गाने का मौका मिला तो उन्होंने सबको चौंका दिया। 1960 में लंदन के मशहूर अल्बर्ट हॉल में लता को गाने का मौका मिला। तब दिलीप कुमार ने उनका सबसे परिचय कराया था। उस जमाने में अल्बर्ट हॉल में गाने का मौका मिलना ही बड़ी बात मानी जाती थी। इसके बाद से लता ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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